Sunday, January 08, 2006
द्विभाषी पुस्तकें बच्चों केलिए
अंग्रेज़ी पत्रिका The Hindu में हाल ही में बच्चों के लिए द्विभाषी पुस्तकों के प्रकाशन पर एक रिपोर्ट पढ़ा। चेन्नाई के "तुलिका" नाम के प्रकाशक कुछ सालों से तमिल-अंग्रेज़ी, तेलुगु-अंग्रेज़ी, मलयालम-अंग्रेज़ी, कन्नड़-अंग्रेज़ी, गुजराती-अंग्रेज़ी, हिन्दी-अंग्रेज़ी, इत्यादि भाषा-जोड़ियों में बच्चों के लिए द्विभाषी पुस्तकें छापते आ रहे है। अब हैद्राबाद में "स्पार्क" नाम के प्रकाशक के साझेदारी में कई और तेलुगु-अंग्रेज़ी शीर्शकों को प्रकाशित करने का इरादा है।
रिपोर्ट की लेखिका, आर. उमा महेश्वरी कहती हैं: "इस तरह के लेखों से, आगे जाकर, बच्चों को शायद हर भाषा की सुन्दरता का एहसास होगा... शायद अनुवाद प्रक्रिया का भी बोध होगा...। पर पहली और सबसे अहम बात यह है, कि ये किताबें बच्चों को यह बात समझा पाएँगी कि वो एक बहु- (या द्वि-) भाषी समाज में रहते हैं।"
रिपोर्ट के अंत में एक भाषा-वैग्यानिक कहती हैं: "अंग्रेज़ी सीखने का दाम हमारी अपनी भाषाओं को नही चुकाना चाहिए.... ऐसी पुस्तकों का मकसद हमे यह याद दिलाना है कि हमारे सामाजिक दायरे में दो भाषाओं को साथ-साथ रहना है -- प्रांतीय भाषा और अंग्रेज़ी।"
आशा है कि आगे-आगे इस तरह की और कोशिशें देखने को मिलेंगी।
रिपोर्ट की लेखिका, आर. उमा महेश्वरी कहती हैं: "इस तरह के लेखों से, आगे जाकर, बच्चों को शायद हर भाषा की सुन्दरता का एहसास होगा... शायद अनुवाद प्रक्रिया का भी बोध होगा...। पर पहली और सबसे अहम बात यह है, कि ये किताबें बच्चों को यह बात समझा पाएँगी कि वो एक बहु- (या द्वि-) भाषी समाज में रहते हैं।"
रिपोर्ट के अंत में एक भाषा-वैग्यानिक कहती हैं: "अंग्रेज़ी सीखने का दाम हमारी अपनी भाषाओं को नही चुकाना चाहिए.... ऐसी पुस्तकों का मकसद हमे यह याद दिलाना है कि हमारे सामाजिक दायरे में दो भाषाओं को साथ-साथ रहना है -- प्रांतीय भाषा और अंग्रेज़ी।"
आशा है कि आगे-आगे इस तरह की और कोशिशें देखने को मिलेंगी।