Tuesday, July 19, 2005
NCERT की भाषा अनुशंसाएँ
भाषा से जुड़ी ये निम्नलिखित अनुशंसाएँ NCERT द्वारा राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (National Curriculum Framework 2005 (Draft) के हेतु तैयार की गयी थीं। यह रहे कुछ मूल, उस दस्तावेज़ के तीसरे अध्याय से:
- आज हम अच्छी तरह जानते हैं कि दुभाष्यता और बहुभाष्यता ग्यान हासिल करने में तरह-तरह के फ़ायदे प्रदान करतीं हैं। कई शोध-पत्रों में साबित किया गया है, कि दुभाष्यता से ग्यान हासिल करने की शक्ति में, समाजिक सहनशीलता में, विविध दृष्टिकोणों से सोचने की क्षमता में, और पढ़ाई में कामयाबी हासिल करने में बढ़ौत्री होती है। सामाजिक या राष्ट्रिय स्तर की बहुभाष्यता को हमें एक साधन मानना चाहिए, अन्य राष्ट्रीय साधनों की तरह ही। भारत की बहुभाष्यता की चुनौतियों से निबटने और उसका फ़ायदा उठाने का एक मार्ग है, त्रिभाष्यता।
- बच्चों की सिक्षा उनकी मातृ भाषा में ही होनी चाहिए।
- अगर प्रांतीय भाषा उसकी मातृ भाषा नहीं है, तो सिक्षा के पहले दो साल फिर भी उसकी मातृ भाषा में ही होनी चाहिए।
- प्राथमिक स्तर पर बच्चों के लिए प्रांतीय या राज्य भाषा एक अनिवार्य विषय होगा।
- मध्य स्तर पर बच्चे राज्य भाषा(ओं) के अलावा अंग्रेज़ी भी सीखेंगे।
- हिन्दी न बोलने वाले राज्यों में बच्चे हिन्दी सीखेंगे। हिन्दी प्रांतों में बच्चे उनके इलाके में न बोले जाने वाली एक भाषा सीखेंगे। इन भाषाओं के अलावा संस्कृत भी सीखी जा सकती है।
- उच्च कक्षाओं में एक शास्त्रीय भाषा और विदेशी भाषा भी शुरू की जा सकती है।
- भाषा सिक्षा को बहुभाष्य होना चाहिए। सिर्फ़ भाषाओं की संख्या में ही नहीं, पर इसमें भी कि इस बहुभाष्यता का फ़ायदा हर संदर्भ में कैसे उठाया जाए। अर्थार्त हमें बहुभाष्य कक्षा को एक साधन बनाने के तौर-तरीके सोचने होंगे।
पूरा दस्तावेज़ (अंग्रेज़ी में) यहाँ पर।
- आज हम अच्छी तरह जानते हैं कि दुभाष्यता और बहुभाष्यता ग्यान हासिल करने में तरह-तरह के फ़ायदे प्रदान करतीं हैं। कई शोध-पत्रों में साबित किया गया है, कि दुभाष्यता से ग्यान हासिल करने की शक्ति में, समाजिक सहनशीलता में, विविध दृष्टिकोणों से सोचने की क्षमता में, और पढ़ाई में कामयाबी हासिल करने में बढ़ौत्री होती है। सामाजिक या राष्ट्रिय स्तर की बहुभाष्यता को हमें एक साधन मानना चाहिए, अन्य राष्ट्रीय साधनों की तरह ही। भारत की बहुभाष्यता की चुनौतियों से निबटने और उसका फ़ायदा उठाने का एक मार्ग है, त्रिभाष्यता।
- बच्चों की सिक्षा उनकी मातृ भाषा में ही होनी चाहिए।
- अगर प्रांतीय भाषा उसकी मातृ भाषा नहीं है, तो सिक्षा के पहले दो साल फिर भी उसकी मातृ भाषा में ही होनी चाहिए।
- प्राथमिक स्तर पर बच्चों के लिए प्रांतीय या राज्य भाषा एक अनिवार्य विषय होगा।
- मध्य स्तर पर बच्चे राज्य भाषा(ओं) के अलावा अंग्रेज़ी भी सीखेंगे।
- हिन्दी न बोलने वाले राज्यों में बच्चे हिन्दी सीखेंगे। हिन्दी प्रांतों में बच्चे उनके इलाके में न बोले जाने वाली एक भाषा सीखेंगे। इन भाषाओं के अलावा संस्कृत भी सीखी जा सकती है।
- उच्च कक्षाओं में एक शास्त्रीय भाषा और विदेशी भाषा भी शुरू की जा सकती है।
- भाषा सिक्षा को बहुभाष्य होना चाहिए। सिर्फ़ भाषाओं की संख्या में ही नहीं, पर इसमें भी कि इस बहुभाष्यता का फ़ायदा हर संदर्भ में कैसे उठाया जाए। अर्थार्त हमें बहुभाष्य कक्षा को एक साधन बनाने के तौर-तरीके सोचने होंगे।
पूरा दस्तावेज़ (अंग्रेज़ी में) यहाँ पर।