Saturday, July 23, 2005
कोंकण के लिए "रोमन लिपि ही उचित है"
कोंकण के लिए कौन सी लिपि उचित है? इस बहस की भाषा-राजनैतिक पृष्टभूमि के बारे में कभी और बात करूंगा पर यहाँ मैं आपका ध्यान इस अंग्रेज़ी लेख की ओर खींचना चाहता हूँ। कोंकण के लिए यह लेखक रोमन लिपि उचित मानते हैं। इनका कहना है कि कोंकण के लिए देवनागरी का इस्तेमाल करना "अवैग्यानिक, तर्क-विरुद्ध और कभी-कभी मूर्खता है, उनके लिए भी जिनकी मातृ-भाषा कोंकण है, और अन्य भाषाओं और कोंकण सीखने वालों के लिए भी।" देवनागरी-कोंकण में ३३ खास कमियाँ हैं, इनके अनुसार, जिन में से ३० दूर कर देती हैं एक परिवर्तित रोमन लिपि जिसे टॉमस स्टीफ़ेन्स कोंकणी केंद्र वालों ने तैयार किया है। इस लिपि के प्रचार के लिए जो काम किए जा रहे हैं उनके वर्णन के साथ यह लेख खतम होता है। अंग्रेज़ी में और इधर।
Tuesday, July 19, 2005
NCERT की भाषा अनुशंसाएँ
भाषा से जुड़ी ये निम्नलिखित अनुशंसाएँ NCERT द्वारा राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (National Curriculum Framework 2005 (Draft) के हेतु तैयार की गयी थीं। यह रहे कुछ मूल, उस दस्तावेज़ के तीसरे अध्याय से:
- आज हम अच्छी तरह जानते हैं कि दुभाष्यता और बहुभाष्यता ग्यान हासिल करने में तरह-तरह के फ़ायदे प्रदान करतीं हैं। कई शोध-पत्रों में साबित किया गया है, कि दुभाष्यता से ग्यान हासिल करने की शक्ति में, समाजिक सहनशीलता में, विविध दृष्टिकोणों से सोचने की क्षमता में, और पढ़ाई में कामयाबी हासिल करने में बढ़ौत्री होती है। सामाजिक या राष्ट्रिय स्तर की बहुभाष्यता को हमें एक साधन मानना चाहिए, अन्य राष्ट्रीय साधनों की तरह ही। भारत की बहुभाष्यता की चुनौतियों से निबटने और उसका फ़ायदा उठाने का एक मार्ग है, त्रिभाष्यता।
- बच्चों की सिक्षा उनकी मातृ भाषा में ही होनी चाहिए।
- अगर प्रांतीय भाषा उसकी मातृ भाषा नहीं है, तो सिक्षा के पहले दो साल फिर भी उसकी मातृ भाषा में ही होनी चाहिए।
- प्राथमिक स्तर पर बच्चों के लिए प्रांतीय या राज्य भाषा एक अनिवार्य विषय होगा।
- मध्य स्तर पर बच्चे राज्य भाषा(ओं) के अलावा अंग्रेज़ी भी सीखेंगे।
- हिन्दी न बोलने वाले राज्यों में बच्चे हिन्दी सीखेंगे। हिन्दी प्रांतों में बच्चे उनके इलाके में न बोले जाने वाली एक भाषा सीखेंगे। इन भाषाओं के अलावा संस्कृत भी सीखी जा सकती है।
- उच्च कक्षाओं में एक शास्त्रीय भाषा और विदेशी भाषा भी शुरू की जा सकती है।
- भाषा सिक्षा को बहुभाष्य होना चाहिए। सिर्फ़ भाषाओं की संख्या में ही नहीं, पर इसमें भी कि इस बहुभाष्यता का फ़ायदा हर संदर्भ में कैसे उठाया जाए। अर्थार्त हमें बहुभाष्य कक्षा को एक साधन बनाने के तौर-तरीके सोचने होंगे।
पूरा दस्तावेज़ (अंग्रेज़ी में) यहाँ पर।
- आज हम अच्छी तरह जानते हैं कि दुभाष्यता और बहुभाष्यता ग्यान हासिल करने में तरह-तरह के फ़ायदे प्रदान करतीं हैं। कई शोध-पत्रों में साबित किया गया है, कि दुभाष्यता से ग्यान हासिल करने की शक्ति में, समाजिक सहनशीलता में, विविध दृष्टिकोणों से सोचने की क्षमता में, और पढ़ाई में कामयाबी हासिल करने में बढ़ौत्री होती है। सामाजिक या राष्ट्रिय स्तर की बहुभाष्यता को हमें एक साधन मानना चाहिए, अन्य राष्ट्रीय साधनों की तरह ही। भारत की बहुभाष्यता की चुनौतियों से निबटने और उसका फ़ायदा उठाने का एक मार्ग है, त्रिभाष्यता।
- बच्चों की सिक्षा उनकी मातृ भाषा में ही होनी चाहिए।
- अगर प्रांतीय भाषा उसकी मातृ भाषा नहीं है, तो सिक्षा के पहले दो साल फिर भी उसकी मातृ भाषा में ही होनी चाहिए।
- प्राथमिक स्तर पर बच्चों के लिए प्रांतीय या राज्य भाषा एक अनिवार्य विषय होगा।
- मध्य स्तर पर बच्चे राज्य भाषा(ओं) के अलावा अंग्रेज़ी भी सीखेंगे।
- हिन्दी न बोलने वाले राज्यों में बच्चे हिन्दी सीखेंगे। हिन्दी प्रांतों में बच्चे उनके इलाके में न बोले जाने वाली एक भाषा सीखेंगे। इन भाषाओं के अलावा संस्कृत भी सीखी जा सकती है।
- उच्च कक्षाओं में एक शास्त्रीय भाषा और विदेशी भाषा भी शुरू की जा सकती है।
- भाषा सिक्षा को बहुभाष्य होना चाहिए। सिर्फ़ भाषाओं की संख्या में ही नहीं, पर इसमें भी कि इस बहुभाष्यता का फ़ायदा हर संदर्भ में कैसे उठाया जाए। अर्थार्त हमें बहुभाष्य कक्षा को एक साधन बनाने के तौर-तरीके सोचने होंगे।
पूरा दस्तावेज़ (अंग्रेज़ी में) यहाँ पर।
Wednesday, July 06, 2005
उर्दू का केंद्रबिंदु दक्षिण भारत में
"उर्दू का केंद्रबिंदु अब दक्षिण भारत में है।" फ़िल्मकर्ता महमूद फ़ारूक़ी का यह कथन हालही में हुए १०वीं और १२वीं परीक्षाओं के परिणामों पर आधारित है। भारत में तक़रीबन सभी उर्दू सीखने वाले मुसलमान हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में -- जहाँ भारत के अधिकतर मुसलमान, और इसलिए अधिकतर उर्दू सीखने वाले, रहते हैं -- केवल २५-३०% विद्यार्थी ही उन परीक्षाओं में सफ़ल हो पाए हैं। पर महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के राज्यों में प्रतिशतता ७० या ८० प्रतिशत भी पायी गयी है। फ़ारूक़ी का मानना है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में हिन्दी का प्रभाव बहुत अधिक है, और उर्दू बोलने वाले छात्र इन राज्यों में आसानी से उर्दू को छोड़ कर अपना अस्तित्व हिन्दी से जोड़ लेते हैं। फ़ारूक़ी का यह भी कहना है कि उर्दू का इस केंद्रबिंदु का दक्षिण भारत में आना दकनी का 'बदला' भी माना जा सकता है। यह इसलिए क्योंकि जब १८ शताब्दी में आधूनिक उर्दू का निर्माण किया जा रहा था, तब दकनी के लेखकों पर "अशुद्ध" उर्दू इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया था। और पढ़िए (अंग्रेज़ी में) यहाँ।
Sunday, July 03, 2005
उड़िसा कालेजों में उड़िया सीखना बन्द!
जैसे-जैसे उड़िसा के कालेजों में उड़िया की माँग कम होती आ रही है, वैसे-वैसे कालेजों ने उड़िया सिखाना ही बन्द कर दिया है। इतना तक की इस साल से राज्य में कुछ १४० कालेजों में उड़िया नहीं पढ़ाई जाएगी। अंग्रेज़ी में और पढ़िए इधर।
ताईवान में अंग्रेज़ी समस्या
ताईवान में अंग्रेज़ी पर ज़ोर के बावजूद विद्यार्थी अंतर्राष्ट्रीय अंग्रेज़ी परीक्षा में असफ़ल। और पढ़िए इधर।